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भीतर सबके होता है एक शिशु, जो उल्लास से किलकारी मा

भीतर सबके होता है एक शिशु,
जो उल्लास से किलकारी मारने को होता है ततपर।
भीतर सबके होता है एक किशोर,
जो नटखट बन, शरारत करना चाहता है अक्सर।
भीतर सबके होता है एक युवा,
जो व्यग्र हो जाता है क्रांति की, जलाने मशाल।
भीतर सबके होता है/होती है एक पति /पत्नी।
जो अपनी घर रूपी गाड़ी में रोज सपने संजोते है।
भीतर सबके होता है एक पड़ोसी।
जो पड़ोस की दौड़ में हो जाना चाहता है शामिल।
भीतर सबके होता है एक अधेड़,
जो समझौता करना लेना सीख लेता अंततः
भीतर सबके होता है एक वृद्ध
जो समर्पित कर देना अपना जीवन प्रभु चरणों में

©Kamlesh Kandpal
  #shishu