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गफलत पाली जाती है,कविता नहीं। तबियत की सब थाती है,

गफलत पाली जाती है,कविता नहीं।
तबियत की सब थाती है, कविता नहीं।
कभी सुना है,कवि दरबारों की शोभा थे,
थे प्रशंसक, आलोचक भी, सही आभा थे,
अब तो दरबार दलाल ! रचयिता नहीं।
अब तो गली-कूचों में तुकबंद-तुक्कड़,
उन गलियों में कवि सच्चा  घुमक्कड़,
कौन कम? चापलूस! वो सुघड़ता नहीं।

©BANDHETIYA OFFICIAL चापलूस कवि !
#selflove
गफलत पाली जाती है,कविता नहीं।
तबियत की सब थाती है, कविता नहीं।
कभी सुना है,कवि दरबारों की शोभा थे,
थे प्रशंसक, आलोचक भी, सही आभा थे,
अब तो दरबार दलाल ! रचयिता नहीं।
अब तो गली-कूचों में तुकबंद-तुक्कड़,
उन गलियों में कवि सच्चा  घुमक्कड़,
कौन कम? चापलूस! वो सुघड़ता नहीं।

©BANDHETIYA OFFICIAL चापलूस कवि !
#selflove