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वक़्त ने ज़ख्म दिए ,ज़ख्म ने सम्हाला है  । ग़ैर तो गै

वक़्त ने ज़ख्म दिए ,ज़ख्म ने सम्हाला है  ।

ग़ैर तो गैर हैं कब हमने ही सम्हाला है ।


कैसा मंज़र ये काले बादलों ने लाया है ।

घर है टूटे हुए ना पास में निवाला है ।


एक था रंग मोहब्बत का सारी बस्ती में ।

तुमने क्यों रंग सियासत का रात डाला है ।


गिर गए लोग किस कदर देखो ।

सिक्कों में खुद को तौल डाला है ।


हो गई शाम घर "प्रमोद" चलो ।

वक़्त है राह में  उजाला है ।


@ प्रमोद
वक़्त ने ज़ख्म दिए ,ज़ख्म ने सम्हाला है  ।

ग़ैर तो गैर हैं कब हमने ही सम्हाला है ।


कैसा मंज़र ये काले बादलों ने लाया है ।

घर है टूटे हुए ना पास में निवाला है ।


एक था रंग मोहब्बत का सारी बस्ती में ।

तुमने क्यों रंग सियासत का रात डाला है ।


गिर गए लोग किस कदर देखो ।

सिक्कों में खुद को तौल डाला है ।


हो गई शाम घर "प्रमोद" चलो ।

वक़्त है राह में  उजाला है ।


@ प्रमोद