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       Dr.Vishal Singh  पढ़. रहे हो क्या....? रात्रि के 11 बजे थे दरवाजें खटखटाते हुए वैभव ने पूछा.. एक मिनिट रुको आता हूँ , दरवाजा खोला देखा... क्यों परेशान लग रहे हो.... खाना नहीं खाया क्या आज , मैंने हसते हुए उस से पूछा.... अरे नहीं भाई खा लिया बस मन नही लग रहा था सोचा थोड़ा तुम्हारे पास बैठ आता हूं .... अच्छा किया तू आ गया ... मैंने कहा उससे... सुन चाय पियोगे ना अपने लिए बनानी थी अब दोनो भाई पीते है... हां बना लो इसलिए तों आया हूँ भला तुम्हारी चाय के लिए कोन मना कर सकता है ..... हा..... हा ...तुम भी ना , मैने हसते हुयें कहा ...।
लो चाय पियो ओर बताओ क्या बात है .... कुछ नहीं बस आज माॅ कीं बहुत याद आ रही है ... बहुत दिन से घर भी नहीं गया ....वैभव ने बताया 
तो क्या हुआ इस शनिवार चले जाना ... कोचिंग भी बन्द है दो दिन .... हां देखूंगा मैरी बात काटते हुए बोला ...अच्छा तुम पढो मै चलता हूँ ...मैरी पसंदीदा चाय के लिए शुक्रिया ..... अरे तुम भी ना .. गुङ नाइट....।
दूसरे दिन सुबह 10 बजे .... वैभव ओ वैभव क्या कर रहा है ...खाना खा लिया तुमने ..... ये क्या हे...सामने का दृष्य देख कर आंखे भर आयीं ... ये सब कब से चल रहा है .... रात्रि भी खाना नहीं खाया ना ....भूख लगीं थीं ना ....बोलते क्यो नही हो , भाई कहते हो ना... कब से चल रहा है ये....रोना बन्द करो ओर मैरे साथ चलो ....।
लो खाना खाओ पहले .... क्या देख रहे हो ..खाओ....
थोड़ी देर बाद .... हां अब बताओ कब से चल रहा है ये कब से भूखें घूम रहे हों .... चार दिन हो गए ....वैभव भारी आवाज़ मे बोला ... 
चार दिन .... ओर तुमने मुझे बताया भी नहीं ..
क्या बताता तुम्हे .... अभी कुछ दिन ओर भूख सहन करनी पड़ेगी ... बस मसाले पीस कर पानी मे उस से दो रोटी दिन भर में खा लेता हूँ ओर अब वो भी खत्म .... हर महीने की बात हैं ये.... मां के पास इतना पैसा नहीं है जो दुबारा भेज सके घर पर और भी खर्चे है.... कमाने वाली बस मां है ... लड झगड़ कर पढने आया हूं .... फिर यहाँ किताब, कोचिंग का खर्चा कुछ पढ़ कर बन जाउंगा तो घर और मां को सम्भाल लुंगा ... तुम्हे पता है... आज चार दिन हुए रोटी नहीं खायी... बस पानी पीकर काम चलाया रात को वो भी खत्म ... भूख के मारे जान निकल रहीं थी... तो तुम्हारा ख्याल लाया... तुम रात को पढते समय चाय पीते हो .... शायद मिल जाये .... इसलिए हीं आया तुम्हे परेशान करनें ....
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       Dr.Vishal Singh  पढ़. रहे हो क्या....? रात्रि के 11 बजे थे दरवाजें खटखटाते हुए वैभव ने पूछा.. एक मिनिट रुको आता हूँ , दरवाजा खोला देखा... क्यों परेशान लग रहे हो.... खाना नहीं खाया क्या आज , मैंने हसते हुए उस से पूछा.... अरे नहीं भाई खा लिया बस मन नही लग रहा था सोचा थोड़ा तुम्हारे पास बैठ आता हूं .... अच्छा किया तू आ गया ... मैंने कहा उससे... सुन चाय पियोगे ना अपने लिए बनानी थी अब दोनो भाई पीते है... हां बना लो इसलिए तों आया हूँ भला तुम्हारी चाय के लिए कोन मना कर सकता है ..... हा..... हा ...तुम भी ना , मैने हसते हुयें कहा ...।
लो चाय पियो ओर बताओ क्या बात है .... कुछ नहीं बस आज माॅ कीं बहुत याद आ रही है ... बहुत दिन से घर भी नहीं गया ....वैभव ने बताया 
तो क्या हुआ इस शनिवार चले जाना ... कोचिंग भी बन्द है दो दिन .... हां देखूंगा मैरी बात काटते हुए बोला ...अच्छा तुम पढो मै चलता हूँ ...मैरी पसंदीदा चाय के लिए शुक्रिया ..... अरे तुम भी ना .. गुङ नाइट....।
दूसरे दिन सुबह 10 बजे .... वैभव ओ वैभव क्या कर रहा है ...खाना खा लिया तुमने ..... ये क्या हे...सामने का दृष्य देख कर आंखे भर आयीं ... ये सब कब से चल रहा है .... रात्रि भी खाना नहीं खाया ना ....भूख लगीं थीं ना ....बोलते क्यो नही हो , भाई कहते हो ना... कब से चल रहा है ये....रोना बन्द करो ओर मैरे साथ चलो ....।
लो खाना खाओ पहले .... क्या देख रहे हो ..खाओ....
थोड़ी देर बाद .... हां अब बताओ कब से चल रहा है ये कब से भूखें घूम रहे हों .... चार दिन हो गए ....वैभव भारी आवाज़ मे बोला ... 
चार दिन .... ओर तुमने मुझे बताया भी नहीं ..
क्या बताता तुम्हे .... अभी कुछ दिन ओर भूख सहन करनी पड़ेगी ... बस मसाले पीस कर पानी मे उस से दो रोटी दिन भर में खा लेता हूँ ओर अब वो भी खत्म .... हर महीने की बात हैं ये.... मां के पास इतना पैसा नहीं है जो दुबारा भेज सके घर पर और भी खर्चे है.... कमाने वाली बस मां है ... लड झगड़ कर पढने आया हूं .... फिर यहाँ किताब, कोचिंग का खर्चा कुछ पढ़ कर बन जाउंगा तो घर और मां को सम्भाल लुंगा ... तुम्हे पता है... आज चार दिन हुए रोटी नहीं खायी... बस पानी पीकर काम चलाया रात को वो भी खत्म ... भूख के मारे जान निकल रहीं थी... तो तुम्हारा ख्याल लाया... तुम रात को पढते समय चाय पीते हो .... शायद मिल जाये .... इसलिए हीं आया तुम्हे परेशान करनें ....