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बाबू जी गांव छोड़ कर शहर नहीं आते और कमाने लगे हैं

बाबू जी  गांव छोड़ कर शहर नहीं आते
और कमाने लगे हैं बेटे तो घर नहीं आते

टूटी चारपाई,कच्ची दीवारें,खुला आसमां
ऊंची इमारतों से ये सब नज़र नहीं आते

एक ही गली में  घर है हम दोनों का मगर
हम उधर  नहीं  जाते  वो इधर  नहीं आते

बहोत ख़त  लिख रखे थे  तुझे भेजने को 
पर छत की मुंडेर पे अब कबूतर नहीं आते

सुकून भरी नींद बचपन की आये जिसपे
बहोत ढूंढा बाज़ार में वो बिस्तर नहीं आते

शहर आकर  ख़ामोश हम  इसलिए भी हैं 
हमको  अभी  बनावट के  हुनर  नहीं आते

रात गुजार देते हैं 'ख़ाक' दहलीज पे वो अब
कितना भी बुला लो दिल के अंदर नहीं आते।। पुराने दिन

#ख़ाकसार #पुरानेदिन #ग़ज़ल #olddays #sher #poetry #nojotohindi #hindipoetry #shayari
बाबू जी  गांव छोड़ कर शहर नहीं आते
और कमाने लगे हैं बेटे तो घर नहीं आते

टूटी चारपाई,कच्ची दीवारें,खुला आसमां
ऊंची इमारतों से ये सब नज़र नहीं आते

एक ही गली में  घर है हम दोनों का मगर
हम उधर  नहीं  जाते  वो इधर  नहीं आते

बहोत ख़त  लिख रखे थे  तुझे भेजने को 
पर छत की मुंडेर पे अब कबूतर नहीं आते

सुकून भरी नींद बचपन की आये जिसपे
बहोत ढूंढा बाज़ार में वो बिस्तर नहीं आते

शहर आकर  ख़ामोश हम  इसलिए भी हैं 
हमको  अभी  बनावट के  हुनर  नहीं आते

रात गुजार देते हैं 'ख़ाक' दहलीज पे वो अब
कितना भी बुला लो दिल के अंदर नहीं आते।। पुराने दिन

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