अंधेरी रातों का शुक्र अदा करते–करते, जी जाएंगे उम्र सारी इन तन्हाइयों में मरते–मरते। अपने जीवन की तबाही का इल्ज़ाम डालें किस–किस पर? कसूरवार ख़ुद बने बैठे हैं बेपरवाही करते–करते। रातों की ओट ने एक आड़ तो दी है इन जख्मों के दर्द को आंखों से बहाने की, वरना इन उजालों ने घुटन के सिवा और दिया क्या है? इतनी उम्मीदें धरते–धरते। ©Deepa Ruwali #SAD #Poetry #shayri #Shayari #write #writer #शायरी