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चंद्र -प्रत्याशा चंद्र -प्रतिक्षा, चांदनी- चंदा क

चंद्र -प्रत्याशा चंद्र -प्रतिक्षा,
 चांदनी- चंदा को देख रही है। 
 निर्जल अर्पण निराहार तर्पण, 
प्रेमिल कैसी यह-प्रेम तपस्या।।

‍देख "चांदनी -चंदकला "को,
"चंद्रकला" सी चहक रही है।
 चंद्र -प्रतिक्षा -चंद्र -चांदनी म्है ,
चांदनी- चंदा देख रही है।।

शरद सुहावन अति मन भावन,
 औषधपति-  सज-" षोडश" आभा।
बरसा रहा है प्रेमिल- प्रभा ,
सुधा सोमरस सम,सबरस- सबरसी ।।

उरबसी सी उर्वशी है ज्यौं,
प्रेम की नदियां बह रही है,
चांदनी -चंदा देख रही है।।

©Ombhakat Mohan( kalam mewad ki)
  Beena Kumari Shweta Srivastava Gargi Sakshi Gupta Ankita Tantuway Avisha Mishra