Tum Ghazal Ban gayi तेरे ख्वाब , तेरे ख्याल अब जीने नही देते, तू मेरे जी का जंजाल बन गई। तेरे गम , तेरे कौल को कुछ लफ्ज दिए हैं मैंने, तू मेरी नई गजल बन गई। मेरी आरजू ये है, की चेन तुझे भी ना मिले कही, ये जलन मेरी आदत बन गई। तेरी खैर खुदा से क्यू माँगू? जब तू किसी और की अमानत बन गई। अब तुझे पहचानने मैं भी बडी दिक्कत है, तू ना जाने किसकी शकल बन गई। अब तेरी खुशबुओ मैं कुछ मिलवाटे है, तू ना जाने किसकी चादर , किसका कम्बल बन गई । - रोहित बैराग ©Rohit Bairag # गजल बन गई #GhazalBanGayi