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" अहमियत क्या है इंसानियत व इंसाफ़ की? यहां तो

" अहमियत क्या है इंसानियत व इंसाफ़ की? 
   यहां तो परवरिश होती है गुनेहगार की।"
ओ मूढ़ जगत के प्राणी!
रोज़ क्यों तुम जीना चाहते हो,
ख़ुद के जीने के लिए दूसरों का हक़ छीनलेते हो?
भगवान् ने बनाया यह संसार, 
लिया पेड़-पौधे, पशु, पक्षी और इंसानों का भार
समझ, गौरव, घमंड, ताकत
इंसान को ही सब मंज़ूर-ए-क़ुदरत!
फिर क्यों क़त्ल छुपाते हो,
दुसरे प्राणी को रुलाते हो?
ख़ुद का दर्द जतालेते हो,
मगर उन्हें क्यों मिटा देते हो?
यह न डर है, न दुआ और न इबादत।
यह न प्यार है, न शौक़ीन आदत।
मत छेड़ो तुम ईमान-ए-ख़ुदा को,
रहमत से उनके सुधारलो जीवन को!
अपने लिए तो इंसानियत का वादा करते हो,
कभी ग़लती का इंसाफ़ चाहते हो,
क्यों अपनी ग़लती को दोहराते हो?  " अहमियत क्या है इंसानियत व इंसाफ़ की? 
   यहां तो परवरिश होती है गुनेहगार की।"
ओ मूढ़ जगत के प्राणी!
रोज़ क्यों तुम जीना चाहते हो,
ख़ुद के जीने के लिए दूसरों का हक़ छीनलेते हो?
भगवान् ने बनाया यह संसार, 
लिया पेड़-पौधे, पशु, पक्षी और इंसानों का भार
समझ, गौरव, घमंड, ताकत
" अहमियत क्या है इंसानियत व इंसाफ़ की? 
   यहां तो परवरिश होती है गुनेहगार की।"
ओ मूढ़ जगत के प्राणी!
रोज़ क्यों तुम जीना चाहते हो,
ख़ुद के जीने के लिए दूसरों का हक़ छीनलेते हो?
भगवान् ने बनाया यह संसार, 
लिया पेड़-पौधे, पशु, पक्षी और इंसानों का भार
समझ, गौरव, घमंड, ताकत
इंसान को ही सब मंज़ूर-ए-क़ुदरत!
फिर क्यों क़त्ल छुपाते हो,
दुसरे प्राणी को रुलाते हो?
ख़ुद का दर्द जतालेते हो,
मगर उन्हें क्यों मिटा देते हो?
यह न डर है, न दुआ और न इबादत।
यह न प्यार है, न शौक़ीन आदत।
मत छेड़ो तुम ईमान-ए-ख़ुदा को,
रहमत से उनके सुधारलो जीवन को!
अपने लिए तो इंसानियत का वादा करते हो,
कभी ग़लती का इंसाफ़ चाहते हो,
क्यों अपनी ग़लती को दोहराते हो?  " अहमियत क्या है इंसानियत व इंसाफ़ की? 
   यहां तो परवरिश होती है गुनेहगार की।"
ओ मूढ़ जगत के प्राणी!
रोज़ क्यों तुम जीना चाहते हो,
ख़ुद के जीने के लिए दूसरों का हक़ छीनलेते हो?
भगवान् ने बनाया यह संसार, 
लिया पेड़-पौधे, पशु, पक्षी और इंसानों का भार
समझ, गौरव, घमंड, ताकत