" अहमियत क्या है इंसानियत व इंसाफ़ की? यहां तो परवरिश होती है गुनेहगार की।" ओ मूढ़ जगत के प्राणी! रोज़ क्यों तुम जीना चाहते हो, ख़ुद के जीने के लिए दूसरों का हक़ छीनलेते हो? भगवान् ने बनाया यह संसार, लिया पेड़-पौधे, पशु, पक्षी और इंसानों का भार समझ, गौरव, घमंड, ताकत इंसान को ही सब मंज़ूर-ए-क़ुदरत! फिर क्यों क़त्ल छुपाते हो, दुसरे प्राणी को रुलाते हो? ख़ुद का दर्द जतालेते हो, मगर उन्हें क्यों मिटा देते हो? यह न डर है, न दुआ और न इबादत। यह न प्यार है, न शौक़ीन आदत। मत छेड़ो तुम ईमान-ए-ख़ुदा को, रहमत से उनके सुधारलो जीवन को! अपने लिए तो इंसानियत का वादा करते हो, कभी ग़लती का इंसाफ़ चाहते हो, क्यों अपनी ग़लती को दोहराते हो? " अहमियत क्या है इंसानियत व इंसाफ़ की? यहां तो परवरिश होती है गुनेहगार की।" ओ मूढ़ जगत के प्राणी! रोज़ क्यों तुम जीना चाहते हो, ख़ुद के जीने के लिए दूसरों का हक़ छीनलेते हो? भगवान् ने बनाया यह संसार, लिया पेड़-पौधे, पशु, पक्षी और इंसानों का भार समझ, गौरव, घमंड, ताकत