थपकियां देकर और कितना सुलाओगे मुझे थोड़ा रो लेने दो और कितना हसाओगे मुझे किसी से कहना मत ये घाव थोड़ा गहरा है देख लो चारो तरफ मेरे अपनों का पहरा है छोड़ दो अकेला और कितना समझाओगे मुझे थपकियां देकर और........ जिसने ये दर्द दिया है मरहम कभी तो लायेगा मुझे भी देखना कितना वो ज़ख्म ढायेगा ये राज़ की बात है और कितना सताओगे मुझे थपकियां देकर और......... मैं चहुमुख देखकर क्या सोचता कैसे बताऊं समझता जब न कोई बात तब मैं लड़खड़ाऊ अब जाने दो और कितना सजाओगे मुझे थपकियां देकर और......... ©R K Mishra # थपकियां