मौक़ूफ़ रहा था ता-उम्र वो क़ुर्बत-ए-आशना का, गिर के उठना, उसे मौसम-ए-सिफर ने सिखाया। कितना ही सहारा चाह लो तुम ज़माने में, गिर के उठने के लिये हौसला ही काफी है। दुनिया तो बस फिकरें कसती रहेगी दोस्त, तुम्हे ऊँचाई अपनी ही काबिलियत देगी। आपका हमसफर, हमकदम, अंजान 'इकराश़'