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Virus.... धर्म का लगाके चश्मा, आंखों में लिए नफ़रत

Virus....
धर्म का लगाके चश्मा, आंखों में लिए नफ़रत...
यह कौन-सा है virus नस नस में दौड़ता है...
माना मज़हब अलग है, और जा़त भी अलग है...
यह कैसा वहशीपन, ना होश है ख़बर है...

जंगल बना दिया है इस देश को हमारे...
Virus की चपेट मे आ गए हैं सारे...
कहीं आग है लगी, कई जान भी गई...
बिमार तो बहुत है, डाक्टर नहीं है कोई...

अब रो पड़ी है आंखें, मंज़र ये देख कर...
कि कौन है यह बिमार, जो अपनों को काटता है...
आत्मा हो रही है खोखली, ज़मीर सड़ रहा है...
यह कौन-सा है virus नस नस में दौड़ता है... virus#poem
Virus....
धर्म का लगाके चश्मा, आंखों में लिए नफ़रत...
यह कौन-सा है virus नस नस में दौड़ता है...
माना मज़हब अलग है, और जा़त भी अलग है...
यह कैसा वहशीपन, ना होश है ख़बर है...

जंगल बना दिया है इस देश को हमारे...
Virus की चपेट मे आ गए हैं सारे...
कहीं आग है लगी, कई जान भी गई...
बिमार तो बहुत है, डाक्टर नहीं है कोई...

अब रो पड़ी है आंखें, मंज़र ये देख कर...
कि कौन है यह बिमार, जो अपनों को काटता है...
आत्मा हो रही है खोखली, ज़मीर सड़ रहा है...
यह कौन-सा है virus नस नस में दौड़ता है... virus#poem
moinkhan4795

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