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मेरे भी घर-आंगन के, एहसास बहुत मनभावन हैं, मस्त-

मेरे भी घर-आंगन के,  एहसास बहुत मनभावन हैं, 
मस्त-मधुर बचपन वर्षा,के कितने रिमझिम सावन हैं।

प्रथम पाठशाला है ये, जीवन का पहला मंदिर भी, 
भाई-बंधु हैं सखा जहां, और मात-पिता हैं गुरूजन भी।

दीवारों पर स्नेह लेप, आंगन में महकता अपनापन, 
सत्कार-अतिथि और प्यार-प्रेम सिखलाते हैं घर के कण-कण।

स्मृति पटल पर आच्छादित वो प्रथम प्यार अपने घर का, 
छूट नही सकता है कभी प्रतिबिंब स्नेह के मंदिर का।

©Anand Prakash Nautiyal tnautiyal
  #Sitaare#घर#आंगन