मैंने लहू के कतरे मिट्टी में बोये हैं खुशबू जहां भी है वह मेरी कर्जदार हैं ऐ वक्त होगा इक दिन तेरा- मेरा हिसाब मेरी जीत जाने कब से तुझ पे उधार है ©kavi Bhajanlal panwar मेरी फितरत है मस्ताना