खुद से दूर अंधेरों में कैद हूं,, सज़ा कोई नही मिली अपनी ही ज़िन्दगी से नाराज़ हूं. खिड़की रख ली है एक रोशनी से मिलने को,,अकेला रहता हूं दर्द-ए-दिल की चीखती आवाज़ हूं. # # # # #