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*बे* यूँ ही बैठी थी, मेरी दोस्त आई और बोली, *अबे!*

*बे*
यूँ ही बैठी थी,
मेरी दोस्त आई और बोली,
*अबे!* का कर रही *बे*.. 
सच अजब लगा.. 
उसका ये *बे* कर करे बोलना.. 
और दिमाग सोचने लगा.. 

कितना बकवास होता है न ये *बे* शब्द भी.. 
जहां भी लगता है वहीं या तो
दर्द देता है या बेड़ा गर्क कर देता है.. 
परवाह में लगे तो *बेपरवाह* बना देता है,
ख्याल में लगे तो किसी को *बेख्याल* कर देता है
दखल में लगे तो *बेदखल* कर देता है
फिक्र में जो लगे तो *बेफ़िक्र* कर दर्द से दिल भर देता है.. 
मुरव्वत में लगे तो *बेमुरव्वत* बनाये,
वफ़ा में लगे तो *बेवफा* बना दे.. 
शर्म में लगे तो *बेशर्म* बना लाज ही छीन ले.. 
गैरत में लगे तो *बेगैरत* बना दे.. 
और नाम में लगे तो *बेनाम* बना दे, पहचान ही छीन ले.. 
और तो और  अपनी जान में ही लगे तो,
सांस छीन *बेजान* बना देता है.. 
सच ही है ये *बे* शब्द बेड़ा गर्क कर देता है,
मन को दर्द से भर देता है...

©Lata Sharma सखी #बे
*बे*
यूँ ही बैठी थी,
मेरी दोस्त आई और बोली,
*अबे!* का कर रही *बे*.. 
सच अजब लगा.. 
उसका ये *बे* कर करे बोलना.. 
और दिमाग सोचने लगा.. 

कितना बकवास होता है न ये *बे* शब्द भी.. 
जहां भी लगता है वहीं या तो
दर्द देता है या बेड़ा गर्क कर देता है.. 
परवाह में लगे तो *बेपरवाह* बना देता है,
ख्याल में लगे तो किसी को *बेख्याल* कर देता है
दखल में लगे तो *बेदखल* कर देता है
फिक्र में जो लगे तो *बेफ़िक्र* कर दर्द से दिल भर देता है.. 
मुरव्वत में लगे तो *बेमुरव्वत* बनाये,
वफ़ा में लगे तो *बेवफा* बना दे.. 
शर्म में लगे तो *बेशर्म* बना लाज ही छीन ले.. 
गैरत में लगे तो *बेगैरत* बना दे.. 
और नाम में लगे तो *बेनाम* बना दे, पहचान ही छीन ले.. 
और तो और  अपनी जान में ही लगे तो,
सांस छीन *बेजान* बना देता है.. 
सच ही है ये *बे* शब्द बेड़ा गर्क कर देता है,
मन को दर्द से भर देता है...

©Lata Sharma सखी #बे