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हर रोज तुम्हारी, हमारी याद आती है कभी यादों को सिर

हर रोज तुम्हारी, हमारी याद आती है
कभी यादों को सिरहाने रख कर सोती हूं
तो कभी यादों का कंबल ओढ़ रो लेती हूं
हंसने को असली हसीं अब आती नही
 मालूम है सुखी तू भी नहीं
तेरी ऐसी हालत मुझसे देखी जाती नहीं
करूं क्या अब वक्त के सहारे है सब, मगर 
वक्त की भी मार अब सही जाती नहीं।

©Deeksha verma
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