सूनी सी हर शाम सड़कें वीरान बाहर चीखता सन्नाटा अन्दर एक खामोश विलाप अस्पतालों में सहमी जिन्दगियां और ठिकाने मांगती लाश मिट्टी के उस ओर थक चुकी जिन्दगियां और इस ओर घुटने टेकते इन्तजाम आबाद कब्रें, बरबाद इंसान ! पर ये शहर खामोश अब नहीं हुआ ये शहर खामोश है बरसों से । अपनी जरूरतों को दरकिनार कर विलासिता के लिए चीखना खामोशी है... एक गम्भीर खामोशी । -MADHVI ©MADHVI SHARMA #covid19 #India