समाज पे आज भी एक दाग है, सब उस चाँद के दाग को मिटाने चले | उसपे दाग क्या लगा है, सब कोई उसे ही दिखाने चले | चलो आज अपने समाज का एक दाग फिर एक बार देखे, चलो अपने आप का भी है एक दाग उसे भी आज देखे | कितनी मोमबत्तीया जल गयी है आज तक उस एक जैसी हज़ारो पर, चलो आज उसका भी तो हिसाब देखे | वो नही है तब पूरा जहाँ उसके पास है, जब वो थी तब उसके अपने भी उसके खिलाफ थे | जहाँ को एक इसरा चाहिए था, उसको बदनाम करने का बहाना ही चाहिए था| बदनामी सह नही पायी जब जग जननी सीता भी, चिर जमी जब उनको भी जाना पड़ा था | क्या दाग लगाया है तूने अपने आप पे वो तो चली गई, और तु ही उसकी मोमबत्ती लिए उसकी श्रद्धांजलि पे गया था | क्यु तूने भी एक दिखावे हा मुखौटा पहना था, सुन कल भी हो रहा था और कल भी होगा | जब तक ये जहाँ है तब तक ये होता ही रहेगा, पर याद रख बदनामी तेरे वाजे से पूरा समज क्यु सहे | जिस दिन पूरा समाज एक हो होगा उस दिन की देर है, सुन ले तू तेरे घर पे उस दिन अंधकार होगा | थोड़ा भरोसा सब पे छोड़ रही हु, दाग लगाने वाले समाज पे और, वो दाग लगाने वाले हर इंसान पे, क्यु की वो इंसान पे सक नही पुरे समज पे है, समाज सुधर गया तो वो इंसान ही मिट जायेगा | और जो वो इंसान ही मिट गया तो मेरे समज पे कोई दाग नही लगाएगा | pls respect the things 🙏🙏🙏