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शाम यथार्थ-2 खुद साये में धूप पड़ी है, कौन उजियार

शाम यथार्थ-2

खुद साये में धूप पड़ी है, कौन उजियारा हो
कश्ती खड़ी मंझधार यहां, कौन किनारा हो ।।
सावन के मौसम में यहां पत्ते झड़ते रहते हैं
बैसाखी के पावन पर्व पर भी, पेट सिकुड़ते रहते है।
मेरी तुझको तेरी मुझको खबर नहीं,
सब अपने में मशगूल यहां।
है रात के बाद रात यहां, कौन सवेरा हो।। 
कश्ती खड़ी मंझधार यहां, कौन किनारा हो ।।

आरती का रसमय स्वर यहां अवसादित होता जाता
मावस की रात का जुगनू यहां अपवादित होता जाता।
हीर की यहां रूसवा बातें, है रांझे के झुठे वादे
सच खोती है वाणी यहां, सब कर्मों में आधे - आधे।।
है सब राधा को चाहने वाले, कौन दशहरा हो।। 
खुद साये में धूप पड़ी है, कौन उजियारा हो
कश्ती खड़ी मंझधार यहां, कौन किनारा हो ।। #mydiary #mystory #mystyle #nojotoहिंदी #writeindia
शाम यथार्थ-2

खुद साये में धूप पड़ी है, कौन उजियारा हो
कश्ती खड़ी मंझधार यहां, कौन किनारा हो ।।
सावन के मौसम में यहां पत्ते झड़ते रहते हैं
बैसाखी के पावन पर्व पर भी, पेट सिकुड़ते रहते है।
मेरी तुझको तेरी मुझको खबर नहीं,
सब अपने में मशगूल यहां।
है रात के बाद रात यहां, कौन सवेरा हो।। 
कश्ती खड़ी मंझधार यहां, कौन किनारा हो ।।

आरती का रसमय स्वर यहां अवसादित होता जाता
मावस की रात का जुगनू यहां अपवादित होता जाता।
हीर की यहां रूसवा बातें, है रांझे के झुठे वादे
सच खोती है वाणी यहां, सब कर्मों में आधे - आधे।।
है सब राधा को चाहने वाले, कौन दशहरा हो।। 
खुद साये में धूप पड़ी है, कौन उजियारा हो
कश्ती खड़ी मंझधार यहां, कौन किनारा हो ।। #mydiary #mystory #mystyle #nojotoहिंदी #writeindia