एक रोज जिंदगी मुझसे रूबरू हो गई, कई सवाल थे मेरे,दिल की पोटली में सोचा-पूछू, आज जो मिली है जिंदगी , पहले तो ये बता, क्यों? इतनी जल्दी मैं बड़ी हो गई, एक रोज जिंदगी.... एक सवाल ये भी था, दिल के किसी कोने में, ये जिम्मेदारी,ये बड़प्पन क्यों? वो नन्हीं मासूम हँसी कहाँ खो गई? एक रोज जिंदगी .... हाथ पकड़ जिंदगी को पास बैठाया मैंने, रुकी कुछ देर देखा उसे, समझ तो ना पाई पर फिर भी सहलाया उसे, पूछा कि ये बँधन ये रिश्ते क्यों ? वो पंख फड़फड़ाती नन्ही परी कहाँ खो गई? एक रोज जिंदगी.... जिंदगी की आँखों में भी जरा आसूँ आ गए, मुझे गले लगाया और बड़े प्यार से बोली-कुछ भी हो, इतनी आसान नहीं हूं मैं, क्यों मुझे समझने की ये तेरी जुस्तजू हो गई? एक रोज जिंदगी.... मैंने कहा -कुछ पल लौटा दे बचपन के, कुछ कच्चे आम ,कुछ पंतग,कुछ रंग बचपन के, कुछ लड़कपन की यादें, कुछ दोस्त बचपन के, ये उम्मीदे और ख्वाहिशें ,क्यों मुझे हो गई ? एक रोज जिंदगी .... मुस्कुराई मन्द आँखों से,मुझे देखा नजर भर उसने, कहा- कितने आए और कितने गए , ये ख्वाहिश लिए चाहत लिए, पर क्या करूं जिंदगी हूं, मैं जिंदगी, यही मेरी बेबसी हो गई!!!! एक रोज जिंदगी .... - नीलम भोला ©Neelam bhola zindagi se rubaru