इश्क भी एक खुली किताब सी हो गयी हैं हर कोई पढ़ने की कोशिश करता है पर उलझ कर रह जाता है अब इश्क मोहब्बत सी नहीं बदनाम सी हो गयी है लाख कोशिशों के बाद ज़िन्दगी अब ढलती शाम सी हो गयी है Chadrashekhar singh Rayees Ahmad Samhita Nandi