कितने भी मुश्क़िल क्यों न हों हालात, उम्मीद का हाथ थामकर लड़ना होगा। आसान नहीं अकेले सफ़र तय करना, क़दम से क़दम मिलाकर चलना होगा। वक़्त की आँधियाँ आती-जाती रहेंगी, दुखों की परछाइयाँ भी सताती रहेंगी। फिर भी विश्वास जगाकर बढ़ना होगा, क़दम से क़दम मिलाकर चलना होगा। सोने नहीं देता मन के भीतर का शोर, ख़त्म ही नहीं होता मुसीबतों का दौर। ख़ुद का हौसला बढ़ाकर रखना होगा, क़दम से क़दम मिलाकर चलना होगा। नमस्कार लेखकों🌺 Collab करें हमारे इस #RzPoWriMoH11 के साथ और "कदम मिला कर चलना होगा" पर कविता लिखें। (मूल कविता अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा) • समय सीमा : 24 घंटे • कैपशन में संक्षिप्त विस्तारण करने की अनुमति है।