बड़ा दुख होता है उन मजदूर भाईयो की खबर सुनकर की हजारों किलोमीटर अपने घर पैदल चल कर जा रहे है कोई उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है यार कुछ तो इंसानियत रखो यार तुम जिस घर में अपने परिवार के साथ रह रहे हो ना उसकी सारी ईट इन्होंने ही लगाई है इंसानियत मर गई है यार 21 लाख का घर बनने की औकात रखते हो तो 21 लोगो खाना नहीं खिला सकते किसी का जमीर जग जाए तो बताना पता तो चले यहां जिंदा लोग कितने है बड़ा दुख होता है