स्मृतियाँ पाथेय बन कर ले जाती है मुझे भूतकाल में , मानो चिरकाल से प्रतीक्षारत हो मेरे आगमन में। दीप्त हो रही स्मृतियाँ मानस पटल पर, किंचित कुछ शेष रह जाता है। मध्य रात्रि के किसी भयानक सपने की भाँति, झिंझोड़ती है मुझे किसी हृदय विदारक घटना की भाँति। निशा में यह कौन सा सूर्य देदीप्यमान हो रहा, किसकी पीड़ा में हृदय मेरा रो रहा। यादों का सागर कभी मुझे जला रहा, कभी मेरे अंतर्मन को सुकून दिला रहा। मध्य रात्रि में उदित हुए इस सूर्य पर, ग्रहण लगाने को मेरा जी ना चाहता है। फिर क्यों इस भानु से, मेरे जीवन में अँधियारा छा जाता। यह कैसी विकट परिस्थिति है, यह कैसी मेरी मनःस्थिति है। आलिंगन करना चाहता हृदय, भूत को वापस पा लेने हेतु;० काल से करता है अनुनय विनय। यह संभव भी तो नहीं, तम में प्रकाश की भाँति ये यादें लग रही। स्मृतियाँ बनकर जीवन का सहारा, यादों का घरौंदा ही है अब आसरा। इस सूर्य के समीप जाने की जितनी कोशिश करती हूँ, उतना ही स्वयं को स्वयं से दूर पाती हूँ। हाँ किन्तु मुझे इस सूर्य की तपन में जलना अच्छा लगता है, गाहे बगाहे कुछ अनाम स्मृतियों में झाँकना भी अच्छा लगता है। स्मृतियाँ पाथेय बन कर ले जाती है मुझे भूतकाल में मानो चिरकाल से प्रतीक्षारत हो मेरे आगमन में दीप्त हो रही स्मृतियाँ मानस पटल पर किंचित कुछ शेष रह जाता है मध्य रात्रि के किसी भयानक सपने की भाँति झिंझोड़ती है मुझे किसी हृदय विदारक घटना की भाँति