रूठना-मनाना नाराज़गी तो बहुत हैं उससे मुझे भी,औऱ जताना भी चाहता हूँ। पर क्या करूँ जब भी उसको मुस्कुराते हुए देखता हूँ तो, उसको नाराज़ करने के लिये मेरे दिल से न जाने क्यों कोई आवाज़ ही नहीं आती। ~रवि #बेबाक़ अल्फ़ाज़# नाराज़गी तो बहुत हैं उससे मुझे भी,औऱ जताना भी चाहता हूँ। पर क्या करूँ जब भी उसको मुस्कुराते हुए देखता हूँ तो, उसको नाराज़ करने के लिये मेरे दिल से न जाने क्यों कोई आवाज़ ही नहीं आती। ~रवि