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साँझ जैसे ही उतरती है आँगन में मेरे,वैसे ही यादों

साँझ जैसे ही उतरती है आँगन में मेरे,वैसे ही यादों का सिलसिला झिलमिलाते पहुँच जाता है दिल के एक कोने में कहीं और रात जैसे ही  स्याह सी काली होतीं जाती है वैसे ही यादें आँखों के सामने मंजर बन कर उतरने लगते है।कई ऐसी यादें जिन्हें मैं भूलना चाहता हूँ वो मुझे अपने आप को भूलने नहीं देती है और जिन्हें मैं उम्र भर सजा कर रखना चाहता हूँ उसे उम्र भर साथ रहने की खुशी में पागल होकर भूलता जा रहा हूँ। 
कभी कभी लगता है इन सारे खट्टे-मिट्ठे यादों की एक फिल्म बना कर रख लूँ अपने पास,जब भी मन करेगा खोल के रख दूँगा हर एक कि कहानी  को अपने सामने।
पर ये ख्याल शायद यादों में ही अच्छे हैं,तो क्या फिर यादों को ही दिल के करीबियों में बाँट देता हूँ, जब भी दिल करेगा जाकर सुन लूँगा अपनी और उनके यादों कि कहानियों को उनकी जुबानी और कुछ यादों को फिर से ले आऊंगा अपने घर जिसमें कुछ दिन और गुजारा कर सकूँ।

©Sandeep Sagar #यादें #sagarkidiaryse 

#findyourself
साँझ जैसे ही उतरती है आँगन में मेरे,वैसे ही यादों का सिलसिला झिलमिलाते पहुँच जाता है दिल के एक कोने में कहीं और रात जैसे ही  स्याह सी काली होतीं जाती है वैसे ही यादें आँखों के सामने मंजर बन कर उतरने लगते है।कई ऐसी यादें जिन्हें मैं भूलना चाहता हूँ वो मुझे अपने आप को भूलने नहीं देती है और जिन्हें मैं उम्र भर सजा कर रखना चाहता हूँ उसे उम्र भर साथ रहने की खुशी में पागल होकर भूलता जा रहा हूँ। 
कभी कभी लगता है इन सारे खट्टे-मिट्ठे यादों की एक फिल्म बना कर रख लूँ अपने पास,जब भी मन करेगा खोल के रख दूँगा हर एक कि कहानी  को अपने सामने।
पर ये ख्याल शायद यादों में ही अच्छे हैं,तो क्या फिर यादों को ही दिल के करीबियों में बाँट देता हूँ, जब भी दिल करेगा जाकर सुन लूँगा अपनी और उनके यादों कि कहानियों को उनकी जुबानी और कुछ यादों को फिर से ले आऊंगा अपने घर जिसमें कुछ दिन और गुजारा कर सकूँ।

©Sandeep Sagar #यादें #sagarkidiaryse 

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