ये बादल बस तन भिगोते हैं , मन क्यूँ नहीं , हजार दरिया मिलते हैं जिसमें , फिर क्यूँ समन्दर ये भरता नहीं , जिनकी बातें करता है ये दिल , फिर क्यूँ वो शख़्स बात करता नहीं , अभी भी ठहरी है एक बीती हुई शाम , मन उस मोड़ से अभी तक शायद चला नहीं , मलाल की कुछ धूल , कुछ सूखे हुए फूल , जैसे अब भी किताबों में हो तुम , बस गुलज़ार की नज़्मों सी , मुकम्मल हो तुम..! @Pandey .A. Harsh #Safarnama Aadya