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मैं जब ज़िन्दगी से पूँछता हूँ इतनी खामोशी क्यूँ है

मैं जब ज़िन्दगी से पूँछता हूँ इतनी खामोशी क्यूँ है ?
वो सवाल करती है मुझसे ही आज इतना हैरान क्यूँ है ?

जब ठहरना ही नहीं सीखा किनारों पर तूने ....
तो देखकर खुद को समन्दर में आज इतना परेशान क्यूँ है ?

गुजर तो रहा है ना वक्त भी सुकूँ से ज़िन्दगी में ..
फिर ये चेहरे पर ललक और तू इतना बे-जान क्यूँ है ?

मैं जब ज़िन्दगी से पूँछता हूँ इतनी खामोशी क्यूँ है ?
वो कहती है जब ख्वाहिशें हीं मर गईं तो तुझमें जान क्यूँ है ? #desires#life#syahi2.0
मैं जब ज़िन्दगी से पूँछता हूँ इतनी खामोशी क्यूँ है ?
वो सवाल करती है मुझसे ही आज इतना हैरान क्यूँ है ?

जब ठहरना ही नहीं सीखा किनारों पर तूने ....
तो देखकर खुद को समन्दर में आज इतना परेशान क्यूँ है ?

गुजर तो रहा है ना वक्त भी सुकूँ से ज़िन्दगी में ..
फिर ये चेहरे पर ललक और तू इतना बे-जान क्यूँ है ?

मैं जब ज़िन्दगी से पूँछता हूँ इतनी खामोशी क्यूँ है ?
वो कहती है जब ख्वाहिशें हीं मर गईं तो तुझमें जान क्यूँ है ? #desires#life#syahi2.0