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कुछ ऐसा हु मैं तो बस कुछ ऐसा सा हूँ मैं...... सूर्

कुछ ऐसा हु मैं
तो बस कुछ ऐसा सा हूँ मैं......
सूर्य सा तेज तो कभी पानी सा निर्मल हूँ मैं।
शेर की दहाड़ तो कभी माँ की पुचकार हूँ मैं।
चट्टान सा अटल तो कभी नाज़ुक सा फूल हूँ मैं।
अग्नि सा प्रज्वालित तो कभी बारिश की बौछार हूँ मैं।
पृथवी सा भार तो कभी हवा का झोंका हूँ मैं।
चेतक की रफ्तार तो कभी कछुए की चाल हूँ में।

कुछ ऐसा हु मैं तो बस कुछ ऐसा सा हूँ मैं...... सूर्य सा तेज तो कभी पानी सा निर्मल हूँ मैं। शेर की दहाड़ तो कभी माँ की पुचकार हूँ मैं। चट्टान सा अटल तो कभी नाज़ुक सा फूल हूँ मैं। अग्नि सा प्रज्वालित तो कभी बारिश की बौछार हूँ मैं। पृथवी सा भार तो कभी हवा का झोंका हूँ मैं। चेतक की रफ्तार तो कभी कछुए की चाल हूँ में।

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