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जब रात के इन सन्नाटों में कुछ जुगनू टहला करते हैं

जब रात के इन सन्नाटों में कुछ जुगनू टहला करते हैं
मुझको ऐसा क्यूँ लगता है कि तुम हो बस अब यहीं कहीं
जब तारे कुछ शरमा कर के, जिस्म रुपहला करते हैं
मुझको ऐसा क्यूँ लगता है कि तुम हो बस अब यहीं कहीं

छूटा जब से शहर तेरा और छूटी तेरी वो महफ़िल
सपने आते हैं टुकड़ो में और टुकड़ों में रहता है दिल
जब किस्सों से और यादों से ये टुकड़े बहला करते हैं
मुझको ऐसा क्यूँ लगता है कि तुम हो बस अब यहीं कहीं जब रात के इन सन्नाटों में कुछ जुगनू टहला करते हैं
मुझको ऐसा क्यूँ लगता है कि तुम हो बस अब यहीं कहीं
जब तारे कुछ शरमा कर के, जिस्म रुपहला करते हैं
मुझको ऐसा क्यूँ लगता है कि तुम हो बस अब यहीं कहीं

छूटा जब से शहर तेरा और छूटी तेरी वो महफ़िल
सपने आते हैं टुकड़ो में और टुकड़ों में रहता है दिल
जब किस्सों से और यादों से ये टुकड़े बहला करते हैं
जब रात के इन सन्नाटों में कुछ जुगनू टहला करते हैं
मुझको ऐसा क्यूँ लगता है कि तुम हो बस अब यहीं कहीं
जब तारे कुछ शरमा कर के, जिस्म रुपहला करते हैं
मुझको ऐसा क्यूँ लगता है कि तुम हो बस अब यहीं कहीं

छूटा जब से शहर तेरा और छूटी तेरी वो महफ़िल
सपने आते हैं टुकड़ो में और टुकड़ों में रहता है दिल
जब किस्सों से और यादों से ये टुकड़े बहला करते हैं
मुझको ऐसा क्यूँ लगता है कि तुम हो बस अब यहीं कहीं जब रात के इन सन्नाटों में कुछ जुगनू टहला करते हैं
मुझको ऐसा क्यूँ लगता है कि तुम हो बस अब यहीं कहीं
जब तारे कुछ शरमा कर के, जिस्म रुपहला करते हैं
मुझको ऐसा क्यूँ लगता है कि तुम हो बस अब यहीं कहीं

छूटा जब से शहर तेरा और छूटी तेरी वो महफ़िल
सपने आते हैं टुकड़ो में और टुकड़ों में रहता है दिल
जब किस्सों से और यादों से ये टुकड़े बहला करते हैं