न घिसता है, न हँसता है, न फँसता है, न रोता है। मैंने देखा नहीं विकल-विचलित उसे आज तक भी जाने वो कब जागता है, न तो जानूँ कब सोता है, अजीब इंसान है यार, होता नहीं या दर्द सह लेता है। न जरूरतें भारी हैं, न उसकी व्यसनों से ही यारी है हर मुश्किल पे हँस रहा है मानो पहले से तैयारी है। उलझा आदमी इतना वैरागी, भूलने का ऐसा आदी, जूते की नोक पर रखे कितने विनाश कितनी बर्बादी। जिसे आजतक जल का एक कतरा न मिल सका हो सर पे सौ तलवार लटकी, एक खतरा न टला हो। ऐसा ही एक महामानव या तो समझ लो जिंदा मुर्दा तुम्हें ढल चुके भाग्य, टुकड़ों से दिल के समझाता है कुछ न चाहो, किसी से न मांगो, दिशाओं से परे रहो बस घड़ी की सुइयों के पड़ाव गिनो, वहीं खड़े रहो। तुम्हें दुख के पल गुजरने का ही तो इंतज़ार रहा था निर्लिप्त हो सुबह शाम, आठों याम यूँ ही गुजरने दो। लाश नहीं, लाज नहीं, असफलता नहीं, उपहास नहीं सबसे बड़ा बोझ अरमानों और दायित्वों का होता है लोग सब से जूझें पर पता है इनसे न निबाह होता है। समुद्र की एक बूंद बनो, बस इतने से सपने बुनो कि तुम्हारी जिंदगी का सारा ध्येय, ज्ञेय है,सूखना नहीं है, तुम्हारी जिंदगी तुम हो, फिलहाल, तुम्हें रुकना नहीं है। मित्र को