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दूर गांव की सीमाओं से एक झौंपङी पङी हुई थी वही से

दूर गांव की सीमाओं से एक झौंपङी पङी हुई थी 
वही से वह मिट्टी में चलकर आती धूल वहां उङती थी 
माता-पिता की निर्धन कन्या हां वह एक दलित की बेटी 
उसे कहा जाता बचपन से बेटी तू है भाग्य की हेटी 
मां चौका बर्तन करती थी वह भी मां के संग जाती थी 
ग्रहणी के ही मुख्य द्वार पर वह रंगोली बनाती थी 
प्रसन्न हो कर घर की मुखिया उसे दो रुपये देती थी 
बेटी बेटी कर ग्रह स्वामिनी छुटपुट काम भी लेती थी 
थोड़ी बङी हुई तो मां को किसी रोग ने जकड़ लिया 
अब चौका बर्तन करना भी उसके भाग्य में चला गया 
एक दिन ग्रह स्वामी अपनी बेटी को गिटार लाये थे 
इसी बात ने रूपमती के सोये भाग्य जगाये थे 
वहां गिटार सिखाने वाला घर पर तो उपलब्ध नहीं था 
रूपमती को गिटार ने ही दिला दिया सुन्दर सा मौका 
उछल-कूद कर शिल्पा आई रूपमती को गले लगाया 
बोली सच में क्या तुम मुझको ये गिटार सिखला दोगी 
उसके बदले बोलो तुम हम लोगों से कितना लोगी 
रूपमती ने कहा मुझे बस थोड़ा नित्य पढा देना 
मै गिटार सिखला दूंगी तुम पढना मुझे सिखला देना 
दोनों ही परिपक्व हो गये अपनी अपनी शिक्षा में 
किन्तु सर्वोत्तम पास हो गयी रूपमती ही परीक्षा में 
उच्च शिक्षा की प्राप्ति के उपरान्त अधिकारी थी रूपमती 
उसकी उन्नति देख आज घर हो गया था सम्पूर्ण सुखी 
एक दलित की बेटी ने सबका अभिमान बढ़ाया था 
उसके माता-पिता ने भी जीवन का सब सुख पाया था ।

©bhishma pratap singh #socialissues #poem #message #MessageToTheWorld #Hindi #must #Important #Dalitkanya #First
दूर गांव की सीमाओं से एक झौंपङी पङी हुई थी 
वही से वह मिट्टी में चलकर आती धूल वहां उङती थी 
माता-पिता की निर्धन कन्या हां वह एक दलित की बेटी 
उसे कहा जाता बचपन से बेटी तू है भाग्य की हेटी 
मां चौका बर्तन करती थी वह भी मां के संग जाती थी 
ग्रहणी के ही मुख्य द्वार पर वह रंगोली बनाती थी 
प्रसन्न हो कर घर की मुखिया उसे दो रुपये देती थी 
बेटी बेटी कर ग्रह स्वामिनी छुटपुट काम भी लेती थी 
थोड़ी बङी हुई तो मां को किसी रोग ने जकड़ लिया 
अब चौका बर्तन करना भी उसके भाग्य में चला गया 
एक दिन ग्रह स्वामी अपनी बेटी को गिटार लाये थे 
इसी बात ने रूपमती के सोये भाग्य जगाये थे 
वहां गिटार सिखाने वाला घर पर तो उपलब्ध नहीं था 
रूपमती को गिटार ने ही दिला दिया सुन्दर सा मौका 
उछल-कूद कर शिल्पा आई रूपमती को गले लगाया 
बोली सच में क्या तुम मुझको ये गिटार सिखला दोगी 
उसके बदले बोलो तुम हम लोगों से कितना लोगी 
रूपमती ने कहा मुझे बस थोड़ा नित्य पढा देना 
मै गिटार सिखला दूंगी तुम पढना मुझे सिखला देना 
दोनों ही परिपक्व हो गये अपनी अपनी शिक्षा में 
किन्तु सर्वोत्तम पास हो गयी रूपमती ही परीक्षा में 
उच्च शिक्षा की प्राप्ति के उपरान्त अधिकारी थी रूपमती 
उसकी उन्नति देख आज घर हो गया था सम्पूर्ण सुखी 
एक दलित की बेटी ने सबका अभिमान बढ़ाया था 
उसके माता-पिता ने भी जीवन का सब सुख पाया था ।

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