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रिश्ता वही श्रेष्ठ होता हैं, जहां उसमे स्वार्थ नही

रिश्ता वही श्रेष्ठ होता हैं, जहां उसमे स्वार्थ नही अपनापन हो। जहां दिखावा नही बल्कि दिल मे उस रिश्ते के लिये मान, सम्मान , समर्पण और प्रेम हो। फ़िर चाहे वो किसी से भी हो।
और अगर किसी रिश्ते के लिये आपके मन मे बैर हैं, मगर आप सिर्फ दिखावे के लिये उसको निभा रहे हो तो, इससे अच्छा हैं उससे दूर हो जाओ। उसका परित्याग करदो । क्योकी मन मे वैमनस्यता और बैर लिये जो रिश्ता पनपता हैं, उसका अन्त कभी सुखद नही होता। 
चाहे फ़िर यह बैर किसी भी रिश्ते के लिये ही क्यो ना हो।
माता, पिता, भाई, बहन, पति, पत्नी, पुत्र, पुत्री, दोस्त, समबन्धी सब अपनेपन के कारण ही आपसे जुड़े होते हैं। मगर जब यह अपनापन खत्म होने लगता हैं, और उस रिश्ते मे कटुता आने लगती हैं, तब सबका व्यवहार आपके लिये बदलने लगता हैं। फ़िर हर रिश्ता सिर्फ नाम का रह जता हैं, इसके अलावा कुछ नही। और किसी के व्यवहार को सोचकर मन ही मन दुखी होने से अच्छा होता हैं, उसे आपसे जुड़े सम्बंध से मुक्त कर उसे उसकी राह पर चलने दिया जायें। अगर सामने वाला सच मे आपके लिये मान-सम्मान, समर्पण और प्रेम भाव रखता होगा, तो वह कभी आपसे दूर नही हो पायेगा। और अगर ऐसा नही हैं, तो आप लाख उसे रोकना चाहो, वह ठहर ही ना पायेगा।
आप इसे कुछ भी कहलो , मगर यह एक कटु सत्य हैं।🙏🙏🙏🙏

©आयुष पंचोली 
©ayush_tanharaahi

#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan  #mereprashnmerisoch रिश्ता वही श्रेष्ठ होता हैं, जहां उसमे स्वार्थ नही अपनापन हो। जहां दिखावा नही बल्कि दिल मे उस रिश्ते के लिये मान, सम्मान , समर्पण और प्रेम हो। फ़िर चाहे वो किसी से भी हो।
और अगर किसी रिश्ते के लिये आपके मन मे बैर हैं, मगर आप सिर्फ दिखावे के लिये उसको निभा रहे हो तो, इससे अच्छा हैं उससे दूर हो जाओ। उसका परित्याग करदो । क्योकी मन मे वैमनस्यता और बैर लिये जो रिश्ता पनपता हैं, उसका अन्त कभी सुखद नही होता। 
चाहे फ़िर यह बैर किसी भी रिश्ते के लिये ही क्यो ना हो।
माता, पिता, भाई, बहन, पति, पत्नी, पुत्र, पुत्री, दोस्त, समबन्धी सब अपनेपन के कारण ही आपसे जुड़े होते हैं। मगर जब यह अपनापन खत्म होने लगता हैं, और उस रिश्ते मे कटुता आने लगती हैं, तब सबका व्यवहार आपके लिये बदलने लगता हैं। फ़िर हर रिश्ता सिर्फ नाम का रह जता हैं, इसके अलावा कुछ नही। और किसी के व्यवहार को सोचकर मन ही मन दुखी होने से अच्छा होता हैं, उसे आपसे जुड़े सम्बंध से मुक्त कर उसे उसकी राह पर चलने दिया जायें। अगर सामने वाला सच मे आपके लिये मान-सम्मान, समर्पण और प्रेम भाव रखता होगा, तो वह कभी आपसे दूर नही हो पायेगा। और अगर ऐसा नही हैं, तो आप लाख उसे रोकना चाहो, वह ठहर ही ना पायेगा।
आप इसे कुछ भी कहलो , मगर यह एक कटु सत्य हैं।🙏🙏🙏🙏

©आयुष पंचोली 
©ayush_tanharaahi
रिश्ता वही श्रेष्ठ होता हैं, जहां उसमे स्वार्थ नही अपनापन हो। जहां दिखावा नही बल्कि दिल मे उस रिश्ते के लिये मान, सम्मान , समर्पण और प्रेम हो। फ़िर चाहे वो किसी से भी हो।
और अगर किसी रिश्ते के लिये आपके मन मे बैर हैं, मगर आप सिर्फ दिखावे के लिये उसको निभा रहे हो तो, इससे अच्छा हैं उससे दूर हो जाओ। उसका परित्याग करदो । क्योकी मन मे वैमनस्यता और बैर लिये जो रिश्ता पनपता हैं, उसका अन्त कभी सुखद नही होता। 
चाहे फ़िर यह बैर किसी भी रिश्ते के लिये ही क्यो ना हो।
माता, पिता, भाई, बहन, पति, पत्नी, पुत्र, पुत्री, दोस्त, समबन्धी सब अपनेपन के कारण ही आपसे जुड़े होते हैं। मगर जब यह अपनापन खत्म होने लगता हैं, और उस रिश्ते मे कटुता आने लगती हैं, तब सबका व्यवहार आपके लिये बदलने लगता हैं। फ़िर हर रिश्ता सिर्फ नाम का रह जता हैं, इसके अलावा कुछ नही। और किसी के व्यवहार को सोचकर मन ही मन दुखी होने से अच्छा होता हैं, उसे आपसे जुड़े सम्बंध से मुक्त कर उसे उसकी राह पर चलने दिया जायें। अगर सामने वाला सच मे आपके लिये मान-सम्मान, समर्पण और प्रेम भाव रखता होगा, तो वह कभी आपसे दूर नही हो पायेगा। और अगर ऐसा नही हैं, तो आप लाख उसे रोकना चाहो, वह ठहर ही ना पायेगा।
आप इसे कुछ भी कहलो , मगर यह एक कटु सत्य हैं।🙏🙏🙏🙏

©आयुष पंचोली 
©ayush_tanharaahi

#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan  #mereprashnmerisoch रिश्ता वही श्रेष्ठ होता हैं, जहां उसमे स्वार्थ नही अपनापन हो। जहां दिखावा नही बल्कि दिल मे उस रिश्ते के लिये मान, सम्मान , समर्पण और प्रेम हो। फ़िर चाहे वो किसी से भी हो।
और अगर किसी रिश्ते के लिये आपके मन मे बैर हैं, मगर आप सिर्फ दिखावे के लिये उसको निभा रहे हो तो, इससे अच्छा हैं उससे दूर हो जाओ। उसका परित्याग करदो । क्योकी मन मे वैमनस्यता और बैर लिये जो रिश्ता पनपता हैं, उसका अन्त कभी सुखद नही होता। 
चाहे फ़िर यह बैर किसी भी रिश्ते के लिये ही क्यो ना हो।
माता, पिता, भाई, बहन, पति, पत्नी, पुत्र, पुत्री, दोस्त, समबन्धी सब अपनेपन के कारण ही आपसे जुड़े होते हैं। मगर जब यह अपनापन खत्म होने लगता हैं, और उस रिश्ते मे कटुता आने लगती हैं, तब सबका व्यवहार आपके लिये बदलने लगता हैं। फ़िर हर रिश्ता सिर्फ नाम का रह जता हैं, इसके अलावा कुछ नही। और किसी के व्यवहार को सोचकर मन ही मन दुखी होने से अच्छा होता हैं, उसे आपसे जुड़े सम्बंध से मुक्त कर उसे उसकी राह पर चलने दिया जायें। अगर सामने वाला सच मे आपके लिये मान-सम्मान, समर्पण और प्रेम भाव रखता होगा, तो वह कभी आपसे दूर नही हो पायेगा। और अगर ऐसा नही हैं, तो आप लाख उसे रोकना चाहो, वह ठहर ही ना पायेगा।
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©आयुष पंचोली 
©ayush_tanharaahi