a-person-standing-on-a-beach-at-sunset पल्लव की डायरी बस्तुओं के साथ साथ कीमत अपनी सब आँक रहे है कर्तव्यों की कुर्बानी देकर लाभ हानि का गणित लगा रहे है रिश्ते सब स्वाहा हो गये इस बाजारवाद के दौर में घुटन भरी है सुबह और शाम अवसाद में सब जा रहे है हद हो गयी पागलपन की धनकुबेर बनकर भी उत्साह उमंग जीवन में नही पा रहे है अपनेपन की चाहत ही दिलो को जिंदा रखती है एक दुसरो पर मर मिटने से ही बगिया जीवन की खिलती है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #SunSet बगिया जीवन की खिलती है