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चल दिया मुसाफिर रेत की बदली में जैसे पंख समेटे चको

चल दिया मुसाफिर रेत की बदली में
जैसे पंख समेटे चकोर चले
सूरज की तेज गरमी में
लूट लिया चैन- ओ - सुकूँ 
इस सुन्दर सुनहरी शाम में
भा गया रहम- ओ - करम 
अब डूबती हर आस में....

©Priya Singh
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