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बड़े अरसे के बाद खुले वो होंठ जो सिल से गए थे बरसो

बड़े अरसे के बाद खुले वो होंठ जो सिल से गए थे बरसों से,
 दरअसल ऊब गए थे वो, उन महफिलों के चर्चों से ,
यकीनन लुटाओ मुझ पर ,शिकवे -शिकायतें
 मगर 
कहीं कर्ज में न आ जाना, अपने ही किए गए खर्चों से कहीं कर्ज में ना आ जाना अपने किए गए खर्चों से
#yourquote #oneliners #thoughtoftheday #myquote #chillingthought
बड़े अरसे के बाद खुले वो होंठ जो सिल से गए थे बरसों से,
 दरअसल ऊब गए थे वो, उन महफिलों के चर्चों से ,
यकीनन लुटाओ मुझ पर ,शिकवे -शिकायतें
 मगर 
कहीं कर्ज में न आ जाना, अपने ही किए गए खर्चों से कहीं कर्ज में ना आ जाना अपने किए गए खर्चों से
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akshitojha7888

Akshit Ojha

New Creator