बड़े अरसे के बाद खुले वो होंठ जो सिल से गए थे बरसों से, दरअसल ऊब गए थे वो, उन महफिलों के चर्चों से , यकीनन लुटाओ मुझ पर ,शिकवे -शिकायतें मगर कहीं कर्ज में न आ जाना, अपने ही किए गए खर्चों से कहीं कर्ज में ना आ जाना अपने किए गए खर्चों से #yourquote #oneliners #thoughtoftheday #myquote #chillingthought