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कहती है मेरी मति, होगा तू अरबपति; होगा तू खरबपति

कहती है मेरी मति,
होगा  तू अरबपति;
होगा  तू खरबपति 
अकेला  अपनी  गली  का
किंतु कविता की कली का
मैं ही हूँ अरबपति,
मैं ही हूँ खरबपति
और कविता अरबों से अधिक अनोखी है।
यही सोचते-सोचते साढ़े बारह बज गये
और  आज  हम  पुनः पन्ने  पे सज गये 
एक और कविता के रूप में।
                              ...✍️विकास साहनी

©Vikas Sahni #अरबों_से_अधिक_अनोखी
कहती है मेरी मति,
होगा  तू अरबपति;
होगा  तू खरबपति 
अकेला  अपनी  गली  का
किंतु कविता की कली का
मैं ही हूँ अरबपति,
मैं ही हूँ खरबपति
और कविता अरबों से अधिक अनोखी है।
यही सोचते-सोचते साढ़े बारह बज गये
और  आज  हम  पुनः पन्ने  पे सज गये 
एक और कविता के रूप में।
                              ...✍️विकास साहनी

©Vikas Sahni #अरबों_से_अधिक_अनोखी
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Vikas Sahni

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