बात सपनों फल सपा और राजनीति के आदेश तक सटी नहीं रहती महतो कक्षा के परिंदे चोट मारे बगैर नहीं रहते कट थोड़ा तो मजबूत डाली को भी छह देता है अपने डाली के फलने फूलने के आसार ना हो तो नहीं डाली पर सपनों की उड़ान चिपकाए रहो तो पंख ही खुद छलांग की सफलता के ऐसे नहीं पाती ऐसे तो गड्ढों के बीच की छपाक संस्कृत ही खूब नसीब है इस गड्ढे में पानी कम हुआ तो दूसरे घंटे में नया बैनर लगाकर छलांग भरली टनल तो जवानी अंदाज है बस नया शब्द को डाउनलोड कर लिया अब कभी पुराने बिस्कोप की तलाश करते हैं कुवे से आकाश को निहारना बेहद मुश्किल है भाग्य हैं उन्हीं धूप दिखा जाए गड्ढों का अपना सौभाग्य है छत पर या काश बस पुराना झाड़ फूंक कर दो पुराने को डिलीट कर दो नई गड्डी की नई इबारत नई संगीसाथी नए संगठन लोकतंत्र की यह खासियत है अभिव्यक्ति की अंदाज जी अपनी ही पहचान को नई रंगत देने की आजादी ऐसा नहीं कि हर कोई कवच में आते ही पसंद करता हूं कहीं ने कवर चाहिए दिए पहचान बनी लोग प्रतिमा भी क्रांति प्रतिमा भी अकाल की तीरंदाजी यही जन हितेषी आंदोलन कोई करे कवच को कोई थोड़े मगर उसी मंच पर अपनी कुर्सी की व्यूह रचना कोई कर ले जाए ©Ek villain #सदाबहार कुर्सी क्रोम #bestfriends