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मैं खुद से मिल सकूँ, खुद को समझ सकूँ बड़ी मायुश सी

मैं खुद से मिल सकूँ, खुद को समझ सकूँ 
बड़ी मायुश सी रहती है ज़िंदगी 
मुझसे कहती है परेशान हो चुकी हूँ
हसीं मे छुपे ख़ामोशीयों को बाहर ला सकूँ 
शायद.......
मैं भी दुनिया के तौर तरीके में उलझे जा रही हूँ 
शब्दों में अगर मैं बयां कर पाऊं चाहत 
तो बस इतनी सी है चाहत 
मकसद समझने की
जो ज़िंदगी सीखाना चाहती है 
बची जो थोड़ी सी है जिंदगी 
थोड़ी सी समझदारी और
 थोड़े समझौते से निभा सकूँ

©Shikha Srivastava
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