आज भी मैं पाता हूँ ख़ुद को उसी तालाब के किनारे, मंदिर की ओर एकटक ताकता हुआ। किसी इंतज़ार में शायद। मानो मंदिर की दीवार के पीछे से खिलखिलाती हुई बाहर आ जाओगी तुम। और फिर मैं भागकर तुमसे लिपट जाऊँगा, ठीक वैसे ही जैसे भीड़ में गुम कोई बच्चा अपनी माँ को देखकर लिपट जाता होगा। और फिर तुम मुझसे कहोगी, "तुम भी ना मुझे कभी नहीं ढूंढ पाते हो। " वाकई में नहीं ढूंढ पाता हूँ..... ©Pranav Singh Baghel #poetry #lost #love #story #Stories #pond #Love #lover #Moon