समर्पण मेरे आंचल की खुशियां तो, तुम्हारी ही अमानत है। मैं निरा एक पत्थर था तूने हीरे की संज्ञा दी। खनन में वर्षों है बीते था मै माटी का ढेला, लगा जो हाथ मै तेरे तभी ये रूप है पाया। पारखी तेरी नज़रों ने मुझे इस ताज में डाला। मेरे आंचल की खुशियां तो, तुम्हारी ही अमानत है।। समर्पण #मधुप्रकश #कवि #कविता #स्वरचित #स्वकृति