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खुद को झूठी तसल्ली दिये जा रहा हूँ, न जाने किस आस

खुद को झूठी तसल्ली दिये जा रहा हूँ,
न जाने किस आस मे जिए जा रहा हूँ,
ऊधार की सांसें,
ऊधार की जिंदगी,
खुद से ही खुद को भटका रहा हूँ,
किश्तों मे जिये जा रहा हूँ,
न जाने क्यों जिये जा रहा हूँ,

उथल पुथल है पल पल यहाँ,
नम आंखों मे गम ही है यहाँ,
सिसकियों मे एक टीस है,
जमाने से खुद को छिपा रहा हूँ ,
बस यूं ही सहे जा रहा हूँ,
न जाने किस आस मे जिये जा रहा हूँ,

क्या पता लोगों को,
झूठी ये शान है, 
स्वांग ये मुसकान है,
सुना है जग मे बड़ा ही नाम है,
सब मिथक है, लोग अनजान हैं,
यथार्थ का जामा गुमनाम है,
मन है कि परेशान है,
सबसे अलग थलग हुये जा रहा हूँ,
न जाने क्यों जीए जा रहा हूँ,
एक झूठी तसल्ली दिये जा रहा हूँ,
न जाने किस आस मे जीए जा रहा हूँ।

©Dr. Satyam Bhaskar
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