#OpenPoetry किसान खड़ा बादल की तरफ निहार रहा है और बादल से अरदास कर रहा है कि मेरे धरती रूपी आंगन में आओ और वर्षा करो धरती सूखी है पेॾ़ काटकर मनुष्य अपना स्वार्थ पूरा कर रहा है बंजर हो गई है धरती, तुम दयालु हो, कृपालु हो ओ मेधा रे मेधा तुम जल्दी आओ मेरे आंगन में ओ मेधा रे मेधा जल्दी आ मेरे आंगन में