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#OpenPoetry किसान खड़ा बादल की तरफ निहार रहा है

#OpenPoetry किसान खड़ा बादल 
की तरफ निहार रहा है
 और बादल से अरदास
 कर रहा है कि मेरे धरती
 रूपी आंगन में आओ
 और वर्षा करो धरती 
सूखी है पेॾ़ काटकर 
मनुष्य अपना स्वार्थ
 पूरा कर रहा है बंजर
 हो गई है धरती,
तुम दयालु हो, कृपालु हो
ओ मेधा रे मेधा तुम 
जल्दी आओ मेरे आंगन में ओ मेधा रे मेधा जल्दी आ मेरे आंगन में
#OpenPoetry किसान खड़ा बादल 
की तरफ निहार रहा है
 और बादल से अरदास
 कर रहा है कि मेरे धरती
 रूपी आंगन में आओ
 और वर्षा करो धरती 
सूखी है पेॾ़ काटकर 
मनुष्य अपना स्वार्थ
 पूरा कर रहा है बंजर
 हो गई है धरती,
तुम दयालु हो, कृपालु हो
ओ मेधा रे मेधा तुम 
जल्दी आओ मेरे आंगन में ओ मेधा रे मेधा जल्दी आ मेरे आंगन में
shivshankar9942

shiv shankar

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