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।। ओ३म् ।। यज्ञ इन्द्रमवर्धयद्यद्भूमिं व्यवर्तयत्

।। ओ३म् ।।

यज्ञ इन्द्रमवर्धयद्यद्भूमिं व्यवर्तयत् । 
चक्राण ओपशं दिवि ॥

पद पाठ
य꣣ज्ञः꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । अ꣣वर्धयत् । य꣢त् । भू꣡मि꣢म् । व्य꣡व꣢꣯र्तयत् । वि꣣ । अ꣡व꣢꣯र्तयत् । च꣣क्राणः꣢ । ओपश꣢म् । ओ꣣प । श꣢म् । दि꣣वि꣢ ॥

(यज्ञः) परोपकार के लिए किये जानेवाले महान् कर्म ने (इन्द्रम्) परमात्मा को अर्थात् उसकी महिमा को (अवर्धयत्) बढ़ाया हुआ है। परमात्मा के यज्ञ कर्म का एक दृष्टान्त यह है (यत्) कि (दिवि) द्युलोक में (ओपशम्) सूर्यरूप मुकुट को (चक्राणः) रचनेवाला वह परमात्मा (भूमिम्) भूमि को (व्यवर्तयत्) सूर्य के चारों ओर घुमा रहा है ॥

(Yajna:) The great deeds performed for benevolence have increased (Indram) the divine, that is, his glory (Avardhyat).  A parable of the Yajna Karma of the divine is (Yat) that (Divya) in the dulok (opsham) is the creation of the sun (crown) in the sun (Chakraanah).

( सामवेद मंत्र १२१ ) #सामवेद #वेद #सूर्य #चक्र #भूलोक
।। ओ३म् ।।

यज्ञ इन्द्रमवर्धयद्यद्भूमिं व्यवर्तयत् । 
चक्राण ओपशं दिवि ॥

पद पाठ
य꣣ज्ञः꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । अ꣣वर्धयत् । य꣢त् । भू꣡मि꣢म् । व्य꣡व꣢꣯र्तयत् । वि꣣ । अ꣡व꣢꣯र्तयत् । च꣣क्राणः꣢ । ओपश꣢म् । ओ꣣प । श꣢म् । दि꣣वि꣢ ॥

(यज्ञः) परोपकार के लिए किये जानेवाले महान् कर्म ने (इन्द्रम्) परमात्मा को अर्थात् उसकी महिमा को (अवर्धयत्) बढ़ाया हुआ है। परमात्मा के यज्ञ कर्म का एक दृष्टान्त यह है (यत्) कि (दिवि) द्युलोक में (ओपशम्) सूर्यरूप मुकुट को (चक्राणः) रचनेवाला वह परमात्मा (भूमिम्) भूमि को (व्यवर्तयत्) सूर्य के चारों ओर घुमा रहा है ॥

(Yajna:) The great deeds performed for benevolence have increased (Indram) the divine, that is, his glory (Avardhyat).  A parable of the Yajna Karma of the divine is (Yat) that (Divya) in the dulok (opsham) is the creation of the sun (crown) in the sun (Chakraanah).

( सामवेद मंत्र १२१ ) #सामवेद #वेद #सूर्य #चक्र #भूलोक