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भावुक ! भरा भाव-रत्नों से, भाषा के भाण्डार भरो ।।

भावुक ! भरा भाव-रत्नों से, 
भाषा के भाण्डार भरो ।। 
देर करो न देशवासी गण, 
अपनी उन्नति आप करो || 
एक हदय से, एक ईश का, धरो, 
विविध विध ध्यान धरो ।। 
विश्व-प्रेम-रत, रोम रोम से, 
गद्गद निर्झर-सदृश झरो ।। 
मन से; वाणी से, कर्मों से, , आधि, व्याधि, उपाधि हरो ।।
 अक्षय आत्मा के अधिकारी, 
किसी विघ्न- भय से न डरो ।।
 विचरो अपने पैरों के बल, 
भुजबल से भव-सिन्धु तरो ।। 
जियो कर्म के लिए जगत में-
 और धर्म के लिए मरो ।।

©Ruchi Sharma 
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country #कविता

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