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देव तत्व की पूजा सृष्टि में देव तत्व की पूजा सावित

देव तत्व की पूजा सृष्टि में देव तत्व की पूजा सावित्र होती है पर देव तत्व को धारण करना किसी व्यक्ति के लिए साधारण बात नहीं है वास्तव में परमात्मा के गुणों को धारण करके उनके पद का अनुगामी बन्ना मानव जीवन के लिए अद्वितीय बात है देवदत्त धारण करना यानी दिव्य गुणों को जीवन में आत्महत्या करना इसके लिए व्यक्ति को कठिन प्रयास श्रद्धा समर्पण निष्ठा और पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है इसके बिना जीवन को धन्य करने का सत्कर्म अधूरा रह जाता है अधिकांश लोग आराम से जीवन जीना चाहता पसंद करते हैं हमारे मन को भी बुरे कार्य की तरफ जाने में अधिक सुविधा नजर आती है यही मन की असुर प्रवृत्ति है पर इसको भोगों से बचाने पर ही रोक के सुरक्षा प्राप्त होती है अन आया था वह गमन अवश्य स्वस्थ होकर चंद दिनों तक बन सकता है ज्यादा दिन तक धरती पर निवास करने के लिए देवदत्त के दिव्य गुणों और कर्मों को धारण करना जरूरी है यही मानवीय प्रवृत्ति है यहां बुरे कर्म की सजा मिलती है और अच्छे कर्म का परिणाम सम्मान यश कृति पद प्रतिष्ठा के रूप में जरूर मिलती है हमारी संस्कृति देवदत्त की है हमारी परंपरा चार पूर्व तान है जो ऋषि यों के आचरण की प्रति छाया है प्रकृति की व्यवस्था अनुचित और नियम ने बांधी है इसी कारण अगर मनुष्य का जीवन यापन प्रकृति के नियमों के अनुसार है तो वह ईश्वर का सच्चा पुत्र होने का अधिकारी है हालांकि ईश्वर का पुत्र होकर व्यक्ति ईश्वर के मार्ग पर चलने से कतराते है और यही उसका दुर्भाग्य है यहां जीवन संघर्ष में है इससे मुंह मोड़ना करता है हमें अपने जीवन में हमें अपने जीवन में बहादुरी का परिचय देना होगा अपने अंदर की बुराइयों से नियंत्रण लड़ना एवं देवदत्त की देवी गुणों को धारण करने की अभिमान को गति देना होगा तभी हम जीवन जीने की सत्य अनुभव अनुभूति कर सकेंगे देवदत्त की असली पूजा यही है ऐसे करके ही हम भवसागर को पार कर सकेंगे

©Ek villain #Davda 

#GaneshChaturthi
देव तत्व की पूजा सृष्टि में देव तत्व की पूजा सावित्र होती है पर देव तत्व को धारण करना किसी व्यक्ति के लिए साधारण बात नहीं है वास्तव में परमात्मा के गुणों को धारण करके उनके पद का अनुगामी बन्ना मानव जीवन के लिए अद्वितीय बात है देवदत्त धारण करना यानी दिव्य गुणों को जीवन में आत्महत्या करना इसके लिए व्यक्ति को कठिन प्रयास श्रद्धा समर्पण निष्ठा और पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है इसके बिना जीवन को धन्य करने का सत्कर्म अधूरा रह जाता है अधिकांश लोग आराम से जीवन जीना चाहता पसंद करते हैं हमारे मन को भी बुरे कार्य की तरफ जाने में अधिक सुविधा नजर आती है यही मन की असुर प्रवृत्ति है पर इसको भोगों से बचाने पर ही रोक के सुरक्षा प्राप्त होती है अन आया था वह गमन अवश्य स्वस्थ होकर चंद दिनों तक बन सकता है ज्यादा दिन तक धरती पर निवास करने के लिए देवदत्त के दिव्य गुणों और कर्मों को धारण करना जरूरी है यही मानवीय प्रवृत्ति है यहां बुरे कर्म की सजा मिलती है और अच्छे कर्म का परिणाम सम्मान यश कृति पद प्रतिष्ठा के रूप में जरूर मिलती है हमारी संस्कृति देवदत्त की है हमारी परंपरा चार पूर्व तान है जो ऋषि यों के आचरण की प्रति छाया है प्रकृति की व्यवस्था अनुचित और नियम ने बांधी है इसी कारण अगर मनुष्य का जीवन यापन प्रकृति के नियमों के अनुसार है तो वह ईश्वर का सच्चा पुत्र होने का अधिकारी है हालांकि ईश्वर का पुत्र होकर व्यक्ति ईश्वर के मार्ग पर चलने से कतराते है और यही उसका दुर्भाग्य है यहां जीवन संघर्ष में है इससे मुंह मोड़ना करता है हमें अपने जीवन में हमें अपने जीवन में बहादुरी का परिचय देना होगा अपने अंदर की बुराइयों से नियंत्रण लड़ना एवं देवदत्त की देवी गुणों को धारण करने की अभिमान को गति देना होगा तभी हम जीवन जीने की सत्य अनुभव अनुभूति कर सकेंगे देवदत्त की असली पूजा यही है ऐसे करके ही हम भवसागर को पार कर सकेंगे

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