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उड़ कर आकाश की ऊँचाइयों को मापना चाहती थी तो उसके

उड़ कर आकाश की ऊँचाइयों को
मापना चाहती थी तो
 उसके पंख कुतरे गए
ख़्वाब देख जब भी पूरा करना चाहा तो
ख़्वाब देखने पर ही पाबंदी लगाई गई
ढल गई उसी सांचे में
जिसमें उसे ढाला
स्त्री है वो
अपनों के लिए
अपने सपनों से समझौता करते गई
टूटे हुए आईने पे हकीकत रूबरू हुई
अपने किरदार को वो हर रूप में बाटते गई

©Shikha Srivastava
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