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#OpenPoetry ज़ख्म लिए खड़ा हूँ शान से, इतनी शहादत

#OpenPoetry ज़ख्म लिए खड़ा हूँ शान से,
इतनी शहादत देखी है कि,
हो गया हूँ खामोश ज़ुबान से,
रोज़ देखता हूँ लड़ता जवानों को,
कभी दुश्मन से तो कभी ख़ुद से,
कभी बारिश से तो कभी हालात से,
फिर भी वो खड़े हैं सरहद पर सीना तान के,
ज़ख्म खाकर अपने खून से सीचा है मुझे,
ऐसे ही नहीं मैं सुन्दर कहलाता,
कमी नहीं देखी मैंने इनके जोश मे,
मेरी रखवाली के लिए खड़े हैं कतार से,
लाखों ज़ख्मों को लिये खड़ा हूँ शान से,
मैं हिमालय हूँ, मैं भारत हूँ,
कहता हूँ अभिमान से।। #OpenPoetry #praveshkrverma
#OpenPoetry ज़ख्म लिए खड़ा हूँ शान से,
इतनी शहादत देखी है कि,
हो गया हूँ खामोश ज़ुबान से,
रोज़ देखता हूँ लड़ता जवानों को,
कभी दुश्मन से तो कभी ख़ुद से,
कभी बारिश से तो कभी हालात से,
फिर भी वो खड़े हैं सरहद पर सीना तान के,
ज़ख्म खाकर अपने खून से सीचा है मुझे,
ऐसे ही नहीं मैं सुन्दर कहलाता,
कमी नहीं देखी मैंने इनके जोश मे,
मेरी रखवाली के लिए खड़े हैं कतार से,
लाखों ज़ख्मों को लिये खड़ा हूँ शान से,
मैं हिमालय हूँ, मैं भारत हूँ,
कहता हूँ अभिमान से।। #OpenPoetry #praveshkrverma