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मजबूरो की आँखों में ईमान देखो, बिखरी हुई कैसे सम्

मजबूरो की आँखों में ईमान देखो, 
बिखरी हुई कैसे सम्हलती है जान देखो, 
क्यों मिला है हकीम को वरदान देखो, 
कैसे झूझती है ज़िंदगी उसका इम्तिहान देखो..!! 

देखो की कैसे होती है आँखे नम अपनो की, 
और कैसे टूट जाती है डोर उनके सपनो की... 

देखो ज़माने में कैसी बेतुकी बात होती है, 
हर सुबह के बाद हिसाबो की रात होती है, 
रह जाता है शायद मलाल अपने कर्मो का, 
तभी तो बिन बात के भी आँखो से बरसात होती है!! 

यूँ ही नही इंसान यहाँ हतास होता है , 
अहमियत समझ कर ज़िंदगी की उदास होता है, 
यहीँ हो जाती है पहचान अपने अपनो की.. 
यहीं चलता है पता कौन मुसीबत मे साथ होता है !!

©Dr. Naveen Parihar
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